साथियों नमस्कार! आज हम आपके लिए हमारे वैद-पुराणों की एक ऐसी कथा “वेदवती की कथा | Vedavati in Hindi” लेकर आएं हैं जिसे पढ़कर आप अपने आपको भारतीय होने पर गोरवान्वित महसूस करेंगे| यह कथा हमें भेजी है पीयूष गोएल ने| आपको हमारा यह संकलन कैसा लगता है हमें Comment Section में ज़रूर बताएं|
Vedavati | वेदवती की कथा
एक बार कुशध्वज नाम के एक राजा थे । वह अत्यंत ज्ञानी थे इसलिए उन्हें देवगुरु ब्रहस्पति के पुत्र की भी उपाधि प्राप्त थी । उनकी एक पुत्री थी , जब उसका जन्म हुआ तब वह रोने के स्थान पर वेदों की महिमा गाने लगी , जिससे प्रसन्न होकर उसके माता पिता ने उस कन्या का नाम वेदवती रखा । वेदवती भगवान विष्णु को बहुत मानती थी ।
एक बार वेदवती तप करने बैठी थी । उसे तप करते करते तीन दिवस पूर्ण हुए । वह भूखी प्यासी थी । उनके पिता कुशध्वज ने जब यह देखा तो वह चिंतित हो उठे उन्होंने वेदवती की तपस्या भंग करने का निश्चय किया । तभी वातावरण में नारायण – नारायण नाम की ध्वनि उतपन्न हुई । वह ध्वनि देवऋषि नारद की थी ।
देवरिषि प्रकट हुए ओर उन्होंने राजा को वेदवती की तपस्या भंग करने से मना किया । ओर कहा की आप ऐसा न करिए क्योकिज़22 वेदवती इस समय भगवान विष्णु के तप में लीन है , इस वक्त वेदवती को उठाना बिल्कुल एक शिशु से उसकी माता छीनने जैसा है । इसलिए हमारा निवेदन है कि कृपा कर आप वेदवती को उनकी साधना से न उठाए । यह बात सुनकर कुशध्वज रुक गए ओर वह चले गए ।
अप पढ़ रहें हैं Vedavati | वेदवती की कथा
कुशध्वज अपनी पुत्री के विषय मे चिंतित थे क्योंकि वेदवती का स्वभाव बिल्कुल भक्तिमय था और वह अपने तप में अधिक लीन रहती थी । कुशध्वज को यह चिंता थी कि वेदवती का विवाह कैसे होगा ? कोंन करेगा वेदवती से विवाह ? वेदवती की संतान होगी या नही ?
कोंन पुरुष वेदवती को अपनी अर्धांगिनी के रूप में स्वीकार करेगा ? क्या वेदवती आजीवन अविवाहित रहेगी ? राजा ने यह सारी बात अपनी रानी को बताई ।
रानी भी अपनी पुत्री के स्वभाव से चिंतित रहती थी । फिर उनके अंधकार भरे जीवन में एक ज्योत जली जब वेदवती ने एक दिन अपने पिता से कहा की वेदवती ने अपने आप के लिए एक वर पसन्द किया है ।
यह सुनकर कुशध्वज अति प्रसन्न हुए ओर वह अति प्रशंसा के भाव मे कहने लगे की पुत्री ! मुझे तुमसे यही आशा थी कि तुम अपने योग्य एक वर का चयन अवश्य करोगी । मुझे पूर्ण विश्वास है कि तुमने जिस वर का चयन करा होगा , वह वर निसन्देह अति मनमोहक व अति ज्ञानी होगा परन्तु उस वर का नाम व पता तो बताओ ताकि हम उस वेद के पास तुम्हारा विवाह प्रस्ताव रख सके ।
यह सुनकर वेदवती ने अपने पिता से कहा कि वह वर अत्यंत मनमोहक ओर ज्ञानी है , उसका नाम श्री विष्णु है और वह वैकुंठ में रहते है । यह सुनकर कुशध्वज चिंतित हो उठे , उन्हें ऐसा लग रहा था जैसे उनके पैरों के तले से जमीन खिंच गयी हो । वह कभी शांत होते तो कभी अपनी पुत्री को निहारते ।
काफी देर तक कोई वार्तालाप नही हुआ , फिर कुशध्वज ने अपनी चुप्पी फोड़ते हुए कहा कि पुत्री ! तुम खुद नही जानती की तुम क्या कह रही हो , तुम जिन विष्णु की बात कर रही हो , उनकी कृपा से सृष्टि की रक्षा होती है । फिर रानी ने भी अपनी चुप्पी तोड़ी और बोली कि भगवान कभी विवाह नही करते , ओर फिर नारायण तो विवाहित है तभी उन्हें लक्ष्मीपति कहा जाता है ।
इसलिए तू यह विचार अपने मन – मस्तिष्क से सदैव के लिए निकाल दे । रानी व राजा ने अपनी बात सम्पूर्ण करी । पर वेदवती तो अपने तन -मन – धन से नारायण को अपना पति मां चुकी थी और किसी भक्त को भगवान से छीनना धरती से सूर्य छीनने जैसा है ।
वेदवती अपनी बात पर अड़ी रही तब कुशध्वज को देवऋषि की सिख याद आई ओर् उन्होंने रानी से कहा कि प्रिये ! अब वेदवती को न रोको बस इतना समझ लो कि अब हमारी पुत्री अपने ससुराल के लिए विदा हो चुकी है ।
वेदवती भगवान विष्णु को प्राप्त करने के लिए एक वटवृक्ष के नीचे बैठकर तप करने लगी । उसने कई वर्षों तक तप किया । उसके तपोबल ने वटवृक्ष के नीचे ही वैकुंठ धाम बना दिया । उसकी यह तपस्या इतनी कठिन थी जितनी देवता भी तपस्या नही कर सकते । भगवान विष्णु सब देख रहे थे ।
ईस कठोर तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु प्रकट हुए ऒर उन्होंने वेदवती से वर मांगने को कहा तब वेदवती ने भगवान नारायण को अपने पति रूप में मांगा तब भगवान बोले कि मैं तो विवाहित हु प्रणति मैं अपने किसी अवतार में तुम्हे अपनी पत्नी अवश्य बनाऊंगा , फिर भगवान चले गए ।
वेदवती दुबारा तप करने लगी । तभी रावण वहां आया , वह वेदवती की सुंदरता देख मोहित हो गया ओर उसके सम्भोग करने की इच्छा करने लगा । तब वेदवती ने रावण को श्राप दिया की वेदवती ही रावण के वध का कारण बनेगी । फिर वेदवती रथ में सवार होकर स्वर्ग की ओर चली गई ।
समय बीता और एक दिन रावण सीता का अपहरण करने आ गया तब वेदवती ने सीता का रूप धारण करा ओर रावण ने वेदवती का ही अपहरण करा ।
श्री राम ने रावण का वध किया और सद्वती को मुक्ति दिलाई । सीता की अग्नि परीक्षा इसलिए हुई ताकि श्री राम सीता को वापस प्राप्त कर सके । जब अग्नि परीक्षा समाप्त हुई तब सीता ने श्री राम से कहा कि वेदवती ने बहुत दुख सहे है इसलिए आप वेदवती को अपनी पत्नी बनाए । तब श्री राम ने ऐसा ही किया|
Vedavati | वेदवती की कथा
पियूष गोएल
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बहुत बढ़िया कथा है