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Story for Kids in Hindi

                 Story for Kids in Hindi | सच्चा स्वांग


कहते हैं की बच्चों को अगर कोई बार कहानी के रूप में समझाई जाए तो उसे वे बखूभी ढंग से समझते हैं| हमारी वेबसाइट का उद्देश्य भी कहानियों (Hindi Stories) के माध्यम से बच्चों को ज्ञानवर्धक बातों को समझाना है| लीजिये इसी कड़ी में हम आपके लिए लाएं हैं “सच्चा स्वांग | Story for Kids in Hindi


                          Story for Kids in Hindi | सच्चा स्वांग

एक राज्य में एक राजा था| एक दिन राजा के पास एक बहुरुपिया आया और बोला, “महाराज में एक बहुरुपियाँ हूँ, मुझमे देवी की एक एसी शक्ति है की में एक बार जो स्वांग धारण कर लेता हूँ उसे पूरी शिद्दत के साथ निभाता हूँ और कभी चुकता नहीं हूँ| राजा बहुरूपिये की बात सुनकर काफी मोहित हुआ और उसे एक विरक्त त्यागी महात्मा का स्वांग लाने का आदेश दिया| बहुरूपिये ने राजा के आदेश को स्वीकार किया और महल से चला गया|

काफी दिनों तक बहुरुपिया एक गुप्त स्थान पर रहा और दाढ़ी बढ़ने पर साधू का स्वांग लेकर शहर में आया| वह सबके साथ एक संत की तरह बर्ताव करने लगा| किसी के साथ कोई राग, द्वेष न रखता| सबको अच्छी-अच्छी बातें सुनाता, हर परेशानी में शहरवासियों को एक संत की तरह सहायता करता| धीरे-धीरे उसकी ख्याति पुरे शहर में फ़ैल गई| 

राजा ने जब शहर में प्रख्यात संत के आने की खबर सुनी तो उसने अपने मंत्री को भेजा की जाकर देखो की वही बहुरुपिया है या कोई संत है? मंत्री ने जाकर देखा तो बहुरूपिये को पहचान लिया और राजा को आकर सारी बात बता दी| मंत्री की बात सुनकर राजा ने अगले ही दिन संत के दर्शन को जाने की घोषणा कर दी| अगले दिन राजा पुरे लाव-लश्कर के साथ एक थाल में  बहुत सारी अशर्फियाँ और एक थाल में भेंट-पूजा का सामान लेकर पुरे ठाठ बाट के साथ वहां गया| रास्ते में जिसने भी राजा को संत के दर्शन के लिए जाते हुए देखा तो यही सोचा की संत बड़े ही पहुचे हुए महात्मा है जिनके दर्शन को राजा खुद जा रहें है| कुछ ही देर में काफी लोग संत की कुटीया के समीप एकत्रित हो गए|

राजा ने  संत की कुटीया में प्रवेश किया और अशर्फियों से भरा थाल संत के समक्ष रख दिया| संत ने अशर्फियाँ अथवा रूपया कपडा कुछ भी लेने से मन कर दिया और “शिव-शिव” कहते हुए वहां से चले गए| राजा के इस व्यहवार को देखकर नगरवासी बहुत नाराज हुए| लोग कहने लगे, अच्छा सत्संग होता था राजा को पता नहीं क्या सूझी कि संत महात्मा को अशर्फियाँ भेंट की| भला रूपया और अशर्फियाँ महात्मा के किस काम की|

अगले दिन बहुरुपिया अपने असली रूप में राजा के महल में उपस्थित हुआ और राजा के दरबार में आकर बोला कि अन्नदाता! इनाम मिल जाए तो बड़ी महरबानी हो! बहुरूपिये की बात सुनकर राजा बोला, “तू बड़ा मुर्ख है! मेने इतनी सारी अशर्फियाँ, रुपिया, कपडा तुम्हारे समक्ष रखा लेकिन तुमने कुछ भी लेने से इनकार कर दिया और अब इनाम मांगने के लिए यहाँ आया है|”

राजा की बात सुनकर बहुरुपिया बोला, “महाराज! उस वक़्त मेने साधू का स्वांग लिया था, फिर में वह काम कैसे कर सकता था की साधू के स्वांग को बट्टा लग जाए| अगर में उस वक़्त आपका इनाम स्वीकार कर लेता तो नगर की जनता मेरे स्वांग का भेद जान जाती|” बहुरूपिये की बात राजा को समझ आ गई| वह बहुरूपिये से बहुत प्रसन्न हुआ और बहुत सारा इनाम बहुरूपिये को दिया|

कुछ दिनों बाद राजा को फिर से स्वांग देखने की इच्छा हुई और उसने अपने मंत्री से बहुरूपिये को दरबार में उपस्थित होने का आदेश दिया| अगले दिन बहुरुपिया जब राजा के दरबार में उपस्थित हुआ तो राजा ने बहुरुपिए को “सिंह” का स्वांग लेने का आदेश दिया| रजा की बात सुनकर बहुरूपिये नें राजा के समक्ष हाथ जोड़ते हुए कहा, “महाराज! आप तो जानते ही हैं, माँ भगवती की शक्ति से में जो भी स्वांग लेता हूँ उसे पूरी शिद्दत के साथ निभाता हूँ| सिंह का स्वांग बहुत खतरनाक है, इसमें कुछ भी नुकसान हो सकता है|” लेकिन राजा नें बहुरूपिये की एक न सुनी और उसे किसी भी कीमत पर सिंह का स्वांग करने का आदेश दिया|

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अगले ही दिन बहुरुपिया सिंह की खाल पहन कर, सिंह की तरह गुर्राता हुआ दरबार में आया और आकर दरबार के बीचों-बिच बैठ गया| समीप ही राजा का लड़का खेल रहा था| लड़का खेलते खेलते वहां आया और सिह को पीछे से लकड़ी मार दी| बस फिर क्या था सिंह बना बहरूपिया गुर्राया और चट से अपने बड़े बड़े नाखूनों से बच्चे की गर्दन पर वार करते हुए बच्चे को मार दिया| यह सब इतना जल्दी हुआ की जब तक दरबार में बेठे लोग समझ पते तब तक राजकुमार की मौत हो चुकी थी|

राजा को जब राजकुमार की मौत की खबर मिली तो राजा बहुत दुखी हुआ और बहुरूपिये को बंदी बनाकर दरबार में पेश करने कका आदेश दिया| बहुरूपिये ने महाराज से हाथ जोड़कर क्षमा मांगते हुए कहा, “महाराज! मेने आपको पहले ही इस तरह के नुक्सान के लिए आगाह किया था लेकिन फिर भी आपने आदेश दिया| मैंने को केवल अपना स्वांग पूरा किया है|

राजा बहुरूपिये को म्रत्यु दंड देना चाहता था लेकिन अपने दी वचन से प्रतिबद्ध था| राजा के पास एक नाई रहता था| उसने राजा को सलाह दी की बहुरूपिये को “सती” का  स्वांग रचने का आदेश दे| सती, पति के पीछे जल जाती है, अतः यह भी जल के मर जाएगा| जिससे आपका वचन भी पूरा हो जाएगा और इस बहुरूपिये को दंड भी मिल जाएगा| अगले ही पल राजा ने बहुरूपिये को सती का स्वांग लाने की आज्ञा दे दी|

शहर में एक लावारिस मुर्दा पड़ा हुआ था |अगले दिन बहुरुपिए ने उस लावारिस मुर्दे को लेकर सती का स्वांग बनाया| सोलह श्रृंगार करके ढोल  नगाड़ों के साथ वह नगर से निकला| लोगों ने देखा कोई “स्त्री” सती होने जा रही है| राजा के पास जब यह समाचार पहुंचा तो उसने मंत्री से पता लगाने को कहा| मंत्री ने पता लगाकर राजा को बताया की यह वही बहुरुपिया है और सती का स्वांग लेकर आया है| राजा ने अपने सिपाहियों को आदेश दिया की इस बहुरूपी को अच्छे से जलाया जाए जिससे यह बच न पाए|

इधर बहुरुपिया उस मुर्दे को लेकर नदी के पास बने शमशान घाट पंहुचा| लोगों ने देखते ही देखते वहां काफी साडी लकड़ियाँ इकट्ठी कर दी| सटी का संग बना बहुरुपिया मुर्दे को लेकर लकड़ियों के ऊपर बेठ गया| लकड़ियों में आग लगा दी गई| इतने में जोर की आंधी और बारिश शुरू हो गई| लोगों में कोई उस बहुरूपिये का सगा तो था नहीं इसलिए आंधी और बारिश आने से सब लोग भाग गए| इधर बारिश से अंग बुझ गई और नदी में पानी बढ़ जाने से सब लकड़ियाँ बह गई| बहुरुपिया लकड़ियों के ऊपर बैठा रहा और तैरते हुए किनारे पहुँच गय| देवी का इष्ट होने से बहुरूपिये के प्राण बच गए|

कुछ महीने बीतने के बाद एक दिन बहुरुपिया राजा के महल में पहुंचा और राजा को बोला, “महाराज! कुछ इनाम मिल जाए| राजा बहुरूपिये को देख कर चक्र गया और बोला, “अरे! तू तो जल के मर गया था ना ?”

राजा की बात सुनकर बहुरूपिये ने विनम्रता पूर्वक जवाब दिया, हाँ महाराज! जल तो गया था लेकिन शक्ति माँ की कृपा से वापस आ गया हूँ| राजा बोला, “क्या तू अमरे बाप-दादा से मिला?” बहुरुपिया बोला, “हाँ महाराज! सबसे मिल कर आया हूँ|

हमारे लिए कुछ समाचार लाया ? (महाराज ने पुछा)

जी हाँ, महाराज..,आपके बाप-दादा अच्छे हैं लेकिन वहां उनकी हजामत और नाख़ून बहुत बढे हुए हैं| इसीलिए उन्होंने वहां घर के नाई को बुलाया है| (बहुरूपिये ने कहा)

और नाई वहां जाएगा कैसे….(राजा बोला)

वैसे ही जैसे आपके बाप-दादा गए, में गया…क्यों की जाने का रास्ता तो एक ही है|

नाइ ने जब बहुरूपिये की बात सुनी तो सोचा की अब तो मेरी मौत पक्की है| राजा के आदेश को कोण नहीं मानेगा, इधर राजा ने आदेश दिया और उधर मुझे सूली पर चढ़ा दिया जाएगा|

इतना सोचते ही नाई ने जाकर बहुरूपिये के पैर पकड़ लिए और बोला, “भाई! तुम किसी तरह मुझे बचा लो| मेरे घर में मेरे सिवा कमाने वाला और कोई नहीं है, मेरा घर बर्बाद हो जाएगा| नाइ की बात सुनकर बहुरुपिया बोला, “मित्र! राजा से सटी का स्वांग लेन की सलाह देने वाला तू ही था अब तू भी जा| बहुरूपिये की बात सुनकर नाई बहुरूपिये के सामने बहुत गिदगिड़ाया और अपने किए की मांफी मांगी|

नाई को यूँ गिडगिडाते देख बहुरूपिये ने सोचा, “नाइ से मेरा कोई वेर नहीं है| गलती सबसे होती है लेकिन माफ़ कर देना ही सबसे उचित है| यही सोचकर बहुरूपिये ने बारिश और आंधी से जन बचने वाली पूरी बात राजा को जाकर बता दी और कहा, “महाराज! सती का स्वांग लेने से में डरता नहीं, आप जो भी स्वांग देंगे में स्वीकार कर लूँगा और पूरी शिद्दत के साथ निभाऊंगा चाहे उसके लिए मुझे अपने प्राण ही क्यों न त्यागना पड़े| अब मेरे स्वांग के लिए आप मुझे जो भी इनाम दें मुझे स्वीकार है|

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कहानी का सार यही है की बहुरूपिये की तरह हमें भी अपने स्वांग को पूरी शिद्दर के साथ निभाना चाहिए| पिता का, भाई का, बहन का, माँ का जो भी स्वांग इश्वर ने मनुष्य को सोंपा है उसे कभी नहीं बिग्फादना चाहिए| को अपने कर्तव्यों का पालन ठीक तरह से करता है विपत्ति आने पर इश्वर भी उसका साथ देते हैं| 


           कहानी एक फूंक की दुनियां

एक गाँव में एक बहुत बड़े त्यागी संत रहा करते थे| दिन भर भगवान का भजन करते और जो कुछ भी गाँव वालों से मिलता उस से अपना भरण-पोषण कर दिन-रात भगवान् की भक्ति में लीन रहते| गाँव भर में उनका बहुत मान सम्मान था| कभी-कभी गाँव वाले अपनी समस्याओं को लेकर उनके यहाँ आते और अपनी समस्याओं का हल पाकर प्रसन्न मन से जाते| संत के इस जीवन से एक दिन एक व्यक्ति प्रसन्न हो गया और संत का शिष्य बन गया| व्यक्ति पढ़ा-लिखा था अतः कुछ ही वर्षों में वह वेद विज्ञान का ज्ञाता हो गया और उसने गाँव वालों को व्याख्यान देना शुरू कर दिया|

धीरे-धीरे बहुत से व्यक्ति उसके पास आने लगे| संत ने उसे समझाया की व्याख्यान देना अच्छी बात नहीं है हमें इस जाल में नहीं फसना चाहिए| संत की बात सुनकर भी शिष्य नहीं मन और दुसरे गाँव में जाकर व्याख्यान देने लगा| अब दूर-दूर तक शिष्य की ख्याति होने लगी| दूर-दूर से लोग उनके व्याख्यान सुनने के लिए आने लगे, यहाँ तक की खुद राजा भी उनके व्याख्यान सुनने के लिए आने लगे|

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गुरूजी को पता था की किसी दिन व्याख्यान देने की यह प्रवृति उनके शिष्य को किसी बड़ी मुसीबत में फसा सकती है| गुरूजी की अपने शिष्य पर दया आ गई| एक दिन तडके गुरूजी अपने शिष्य के पास पहुंचे तब शिष्य के प्रवचन का समाय था| शिष्य ने जैसे ही अपने गुरूजी को सभा मंडप की और आते हुए देखा तो कहा- “अरे! आज तो हमारे गुरु महाराज हमारे बिच में पधारे हें| लोगों ने जब गुरु महाराज को देखा तो बड़ी मात्रा में गुरूजी के चारों और एकत्रित हुए| गुरूजी को बड़े आदर सम्मान के साथ ऊँचे आसन पर बिठाया गया| लोगों ने गुरूजी का बड़ा आदर, सम्मान और महिमा की|

अगले ही दिन गुरूजी के सम्मान में एक बहुत बड़ी सभा आयोजित की गई जिसमें दूर -दूर से लोग गुरूजी के दर्शन को एकत्रित हुए| सभा में राज्य के राजा को भी आने का न्योता दिया गया| अगले दिन जब सभा आयोजित हुई तो गुरूजी को न जाने क्या सूझी की अपने आसन से उठे राजा के पास गए और “भर्रर्रर्रर…………….” कर के उपानवायु छोड़ दी! लोगों ने जब गुरूजी के इस व्यहवार को देखा तो कहा, “चेला तो ठीक है, लैकिन गुरूजी में कुछ नहीं है”| गुरूजी के इस व्यहवार से लोगों के साथ-साथ राजा भी नाराज हुए| तभी गुरूजी ने शाम को ही वहां से प्रस्थान करने की घोषणा की| लोग मन ही मन प्रसन्न हुए “चलो जल्दी ही आफत टली”

“हें तो महाराज के गुरूजी ही, थोडा आदर सम्मान से विदा करेंगे तो अच्छा लगेगा”  बस यही सोचकर सभी लोग गुरूजी को विदा करने गाँव के बाहर तक आए| वहां एक मरी हुई चिड़िया पड़ी थी, गुरूजी ने उसे अपनी उँगलियों से पकड़कर ऊपर उठा लिया और सबको दिखाने लगे| लोग गुरूजी को देखने लगे गुरूजी यह क्या करते हैं| तभी गुरूजी ने चिड़िया के सामने जोर से फूंक मरी तो चिड़िया “फुर्रर्रर्र……….” करके उड़ गई| लोग गुरूजी के इस चमत्कार को देखकर आश्चर्यचकित हो गए| अब लोग कहने लगे गुरूजी तो बड़े सिद्ध महात्मा है और गुरूजी की चरों और जय जयकार होने लगी|

यह देख गुरूजी ने  अपने शिष्य को पास बुलाया और कहा, “वत्स! तुम समझे या नहीं ?

गुरूजी की बात सुनकर शिष्य ने कहा, “क्या समझना है गुरूजी”?

गुरूजी मुस्कुराए और बोले, ” इस दुनियां की किमत समझी या नहीं तूने, यह सब दुनियां फूंक की है| एक फूंक में भाग जाए और एक फूंक में आ जाए, फूंक एक क्षण भर का होता है इसका क्या मोल है| इसलिए ऊँचे आसन पर बैठकर, व्याख्यान देने से कोई बड़ा नहीं हो जाता| इसिकिये इस मान बड़ाई में  न फसकर भगवान् का भजन करो|


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