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Kahaniya in Hindi

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साथियों, प्रेरणादायक कहानियां ( Kahaniya in Hindi ) हमारे जीवन में एक बहुत बड़ा महत्त्व रखती है| बचपन में जब दादी-नानी हमें कहानियां सुनाया करती थी तो कहानी कहानी में ही हम पूरी दुनियां का ज्ञान हांसिल कर लेते थे| आज हम आपके लिए ऐसी दो शानदार कहानियां लेकर आए हैं जिन्हें पढ़कर या अपने घर परिवार के बच्चों को सुनाकर आप उन्हें जीवन के बारे में कई बाते सिखा सकते हैं! आइये पढ़ते हैं Kahaniya in Hindi | जादुई वस्त्र – लालची सेठ


Kahaniya in Hindi | जादुई वस्त्र

एक राज्य में एक मुर्ख राजा रहता था| अपने पूर्वजों के दीए राज्य व् धन दोलत के बूते वह राज्य की राज गद्धी पर तो बैठ  गया लेकिन अपनी मुर्खता के कारण राज्य में कोई भी राजा को मुर्ख बना कर अपना काम निकाल लेता था| 

राजा बहुत ही सीधा-साधा था| लेकिन अपनी मुर्खता के चलते वह कभी भी किसी से भी नाराज हो जाता, किसी पर भी क्रोध करने लगता और किसी को भी म्रत्यु दंड दे देता था| राजा के इस स्वाभाव से पूरा राज्य दुखी था|

एक दिन राज्य के ही एक होंशियार व्यक्ति ने राजा को सबख सिखाने का मन बनाया और राज दरबार में पहुँच गया| राजदरबार में पहुंचकर व्यक्ति बोला – महाराज की जय हो… महाराज! में पास ही के एक गाँव का रहने वाला कपड़ों का व्यापारी हूँ| आज में आपके लिए एक अमूल्य भेंट लेकर यहाँ आया हूँ जिसे देखकर आप बड़े ही खुश हो जाएँगे|

राजा व्यापारी की बात सुनकर बड़ा प्रसन्न हुआ| राजा ने व्यापारी से भेंट स्वीकार करने का आश्वासन देते हुए भेंट राजदरबार में प्रस्तुत करने का आदेश दिया|

राजा की बात सुनकर व्यापारी बोला – महाराज! मुझे अपने पूर्वजों ने एक अमूल्य वस्त्र उपहार में दिया है| जो बहुत ही खुबसूरत और जादुई है| अगर आप वह वस्त्र पहनेंगे तो इस देश में आप सा सुन्दर राजा दूसरा न होगा| लेकिन उस वस्त्र से आपके लिए पोषक बनाने में मेरे कारीगरों को पचास हजार अशर्फियों की लागत आएगी जो आपको व्यय करना होगी|

राजा वस्त्र की तारीफ सुनकर इतना मंत्रमुग्ध हो गया की उसने अपने मंत्री को व्यापारी को पचास हज़ार अशर्फियाँ देने का आदेश दे दिया| व्यापारी अशर्फियाँ लेकर राजा दरबार से चला गया और दो दिन बाद राजा के लिए वह पोशाक ले आने का आश्वासन दिया|

दो दिन बाद वह व्यापारी एक बहुत ही चमचमाता हुआ बक्सा लेकर राजदरबार पहुंचा| बक्सा देखकर ऐसा लग रहा था, मानों बक्से में बहुत ही बड़ा खज़ाना छुपा हो| बक्से की चमचमाहट और खूबसूरती देखकर राजा मंत्रमुग्ध हो गया|

व्यापारी ने बक्से को राजदरबार के बीचोंबीच रख दिया और बोला – महाराज! इस पोशाक को बनाने में मेरे कारीगरों ने बड़ी ही मेंहनत की है| लेकिन इस पोशाक की खास बात यह है की यह पोशाक सिर्फ उसी इन्सान को दिखती है जो असली माँ-बाप का हो| अगर इस राजदरबार में किसी इन्सान का कोई दूसरा बाप होगा तो उसको यह पोशाक दिखाई नहीं देगी|

व्यापारी की बात सुनकर पूरा राजदरबार उस पोशाक को देखने के लिए आतुर हो उठा| अब व्यापारी ने उस बक्से से पोशाक निकालने का ढोंग शुरू कीया जो की वास्तव में उस बक्से में थी ही नहीं| पोशाक को अपने हाथों में लेने का ढोंग करते हुए वह पोशाक की सुन्दरता की तारीफें करने लगा|

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व्यापारी की बात सुनकर राजदरबार में उपस्थित सभी राज दरबारी उस पोशाक की तारीफ करने लगे जो की वास्तव में थी ही नहीं| सभी यह सोच रहे थे की अगर वे पोशाक नज़र न आने की बात राज दरबार में कहेंगे तो सभी यही मानेंगे की वे असली माँ-बाप की औलाद नहीं है|

कई राजदरबारी तो यह सोच रहे थे की हो सकता है की वास्तव में वे असली माँ बाप की औलाद नहीं है क्यों की दरबार में उपस्थित बाकी सभी को तो वह वस्त्र दिखाई दे ही रहा है| बस इसी तरह सबने व्यापारी की बातों में हाँ कर दी और महाराज भी यही सोच कर चुप रहे की केवल उन्हें छोड़कर सभी को वह पोशाक दिखाई दे रही है|

अब व्यापारी ढोंग करते हुए वह पोशाक लेकर राजा के पास पहुंचा और राजा को धोती और पगड़ी देते हुए पहनने के लिए आग्रह किया| राजा तो पहले से ही मुर्ख था, उसे मुर्ख बनाने में व्यापारी को ज्यादा समय नहीं लगा| अब मंज़र कुछ ऐसा था की राजा जी जैसे इस धरती पर आए थे ठीक वैसे ही हो गए यानी की पुरे निर्वस्त्र|

अब पुरे राजदरबार के सामने महाराज बिलकुल निर्वस्त्र खड़े थे लेकिन राजा के म्रत्युदंड के डर से किसी भी राजदरबारी में यह हिम्मत नहीं थी की वह राजा को यह कह सके की वह बिलकुल निर्वस्त्र खड़े हैं|

राजा को पोशाक पहनाने के बाद व्यापारी ने राजा की इतनी तारीफ की के राजा जी फुले नहीं समाए और ऐसे ही निर्वस्त्र रनिवास की और चल पड़े|

रानियों ने जैसे ही महाराज को निर्वस्त्र देखा तो हसने लगी और बोली – महाराज! आज क्या आपने मदिरा का सेवन कर लिया है ? क्षमा करें, आप पुरे महल में यूँ निर्वस्त्र होकर क्यों घूम रहे हैं|

रानियों को वस्त्र न दिखने पर राजा मुस्कुराए और बोले – महारानी! अवश्य ही आप असली माँ-बाप की नहीं हो| क्यों की यह जादुई वस्त्र हैं, यह केवल उन्हीं इंसानों को दीखते हैं जो असली माँ-बाप के हो| आपने मुझसे इतनी बड़ी बात क्यों छुपाए रखी ?

आप नाजायज हैं और महल में नाजायज़ को रहने का कोई हक़ नहीं| इसीलिए हम अभी और इसी वक़्त आपको महल से बाहर करते हैं| बस इतना कहकर राजा ने अपने सैनिकों को आदेश देकर रानी को महल से बाहर निकाल दिया|

तो साथियों, इसीलिए कहा गया है

उपदेशो हि मूर्खाणां प्रकोपाय न शान्तये। पयः पान भुजङ्गानां केवलं विषवर्धनं।।

यानि की मूर्खों को उपदेश देना उनके क्रोध को शांत करना नहीं वरन बढ़ाना है…

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Kahaniya in Hindi – लालची सेठ

एक मंदिर में एक ब्राम्हण रहता था| जो दिन रात भगवान् की सेवा में लगा रहता| ब्राम्हण की एक पुत्री थी रूपवती| ब्राम्हण रोज सवेरे उठकर भगवान् की पूजा-पाठ में लग जाता| रूपवती की भी भगवान् में बड़ी आस्था थी| बचपन से ही वह भगवान् की भक्ति में लगी रहती| भगवान् के लिए पुष्प व् पूजन सामग्री एकत्रित करना उसी की ज़िम्मेदारी थी|

समय के साथ-साथ रूपवती बड़ी हुई| अब ब्राम्हण को रूपवती के विवाह की चिंता सताने लगी थी| ब्राम्हण ने सोचा क्यों ने में मंदिर में कथा करना शुरू कर दूँ, जिससे की चढ़ावे में कुछ पैसा आने से मुझे थोड़ी आमदनी भी हो जाएगी और गाँव वालों में भी भगवान् के प्रति आस्था बढ़ेगी|

बस यही सोचकर ब्राम्हण ने अगले दिन से ही मंदिर प्रांगण में ही कथा करना शुरू कर दिया| ब्राम्हण का मानना था की चाहे गाँव वाले उसकी कथा न सुने, लेकिन मंदिर में विराजे भगवान् तो उसकी कथा सुंनेगे ही|

अब ब्राम्हण की कथा में  कुछ गाँव वाले आना शुरू हो गए| एक दिन गाँव का ही एक कंजूस सेठ मंदिर में भगवान् का दर्शन करने के लिए आया और दर्शन करने के बाद मंदिर की परिक्रमा करने लगा| तभी उसे मंदिर के अन्दर कुछ आवाज़े सुनाइ दी| उसने मंदिर की पीछे की दिवार पर कान लगा कर सुना तो मंदिर के अन्दर दो लोग एक दुसरे से बात कर रहे थे|

उसने बड़े धयान से सुना… मंदिर के अन्दर भगवान् राम और हनुमान जी आपस में बात कर रहे थे| भगवान् राम हनुमान जी से ब्राम्हण की कन्या के कन्यादान के लिए दो सो रुपयों का प्रबंधन करने का कह रहे थे| भगवान् राम का आदेश पाकर हनुमान जी ने ब्राम्हण को दो सौ रूपए देने की बात भगवान् राम को कही|

आप पढ़ रहें हैं “Kahaniya in Hindi – लालची सेठ”

सेठ जी ने जब भगवान् राम और हनुमान जी की बात सुनी तो कथा के बाद वे ब्राम्हण से मिले और कथा से होने वाली आय के बारे में पूछा| सेठ जी की बात सुनकर ब्राम्हण बोला – सेठ जी, कथा में बहुत ही कम लोग आ रहें हैं, भला इतने कम श्रद्धालुओं में क्या आय होगी|

सेठ जी ने ब्राम्हण को आश्वासन देते हुए कहा की आज कथा में जो भी आय हो वह ब्राम्हण उन्हें दे दें,  इसके बदले में सेठ जी ब्राम्हण को सौ रूपए दे देंगे| ब्राम्हण को भला क्या एतराज़ होता, उन्होंने सेठ जी की बात मान ली| उधर सेठ जी यह सोच रहे थे की ब्राम्हण को आज कथा में हनुमान जी दो सौ रुपए देने वाले हैं जो में ब्राम्हण से ले लूँगा और बदले में उसे सौ रूपए दे दूंगा| जिससे की मेरी सौ रुपए की कमाई हो जाएगी|

शाम को कथा समाप्त होने पर सेठ जी ब्राम्हण के पास आए| उन्हें यकीन था की आज ब्राम्हण को दो सौ रूपए की आय हुई होगी| ब्राम्हण सेठ जी को देखते ही सेठ जी की पास आया और बोला – “सेठ जी आज तो काफी कम भक्त कथा में आए थे जिससे बहुत ही कम आय हुई है| बस दस रूपए ही इकठ्ठा हो पाए हैं!”

सेठ अब करता भी क्या| उसने ब्राम्हण को दिए वचन के अनुसार ब्राम्हण को सौ रूपए दे दिए और इस सौदे में तो सेठ जी को नुकसान हो गया| सेठ जी हनुमान जी पर बहुत गुस्सा हुए की उन्होंने ब्राम्हण को दौ सौ रुपयों की मदद भी नहीं की और भगवान् को दिया अपना वचन भी पूरा नहीं किया|

सेठ जी को हनुमान जी पर बहुत गुस्सा आया| वे गुस्से में मंदिर के अन्दर गए और उन्होंने हनुमान जी की मूर्ति को धक्का दे दिया| सेठ जी ने जैसे ही हनुमान जी की मूर्ति को धक्का देने के लिए अपना हाथी मूर्ति पर रखा हाथ वहीँ चिपक गया| भला हनुमान जी के पकड़ से कोई बच सकता है|

तभी सेठ जी को को फिर एक आवाज़ सुनाई दी| अब भगवान् राम हनुमान जी से ब्राम्हण को दौ सौ रूपए देने के बारे में पुछ रहे थे| भगवान् राम का आदेश सुनकर हनुमान जी बोले  “प्रभु..सौ रूपए की मदद तो हो गई है, बाकि बचे सौ रुपयों के लिए सेठ जी को पकड़ के रखा है| जैसे ही वे सौ रूपए देंगे उनको छोड़ देंगे|

सेठ जी ने जैसे ही भगवान् राम और हनुमान जी के बीच की बात सुनी उन्होंने सोचा, “अगर गाँव वालों ने देख लिया की में हनुमान जी की मूर्ति को धक्का मार रहा था और हनुमान जी ने मुझे पकड़ लिया है तो मेरी बहुत बदनामी होगी|”

बस फिर क्या था, “सेठ जी ने हनुमान जी को ब्राम्हण को सौ रूपए देने का वादा किया”

हनुमान जी ने सेठ की बात मानकर उसका हाथ छोड़ दिया और सेठ जी ने अपने वादे अनुसार ब्राम्हण को सौ रूपए दे दिए और सर पकड़ कर चलते बने|

साथियों, इसीलिए कहा गया है ज्यादा लोभ हमेशा हानिकारक होता है| सेठ को उसके लालच की सज़ा मिल गई और ब्राम्हण को उसकी भक्ति का फल| इसीलिए कहा गया है जैसी करनी वैसी भरनी…

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