साथियों नमस्कार, यह कहानी “Train Short Story in Hindi | रेल-कहानी नौजवान की ” एक प्रयास है समाज की दकियानूसी सोच को चुनोती देने का! इस कहानी के माध्यम से हम आपको समाज के एक नए नज़रिए से रूबरू करवाने वाले हैं|
Train Short Story in Hindi | रेल-कहानी नौजवान की
खड़-खड़ करती राजधानी एक्सप्रेस जब पास से गुजरी तब उसका ध्यान टुटा। करीब आधा घंटा होने को आया था, उसकी गाड़ी को क्रासिंग (Crossing) पर पड़े हुए|
हैडफ़ोन लगा कर लगभग २२ बरस का वो लड़का “राजेश” गाने सुनने में इतना मस्त था की उसे समय का कुछ पता ही नहीं चला।
उसने झुक कर पास वाली खिड़की से देखा, रात के उस सन्नाटे में खड़-खड़ करती राजधानी एक्सप्रेस की आवाज़ और अँधेरे में चमकती ट्रेन (Train) की खिडकियों ने उस आम आदमी को इतना खास बना दिया की लगभग आधे घंटे से स्टेशन पर खड़ी उस लोकल गाड़ी का वो लोकल पेसेंजर, सोच के सागर में डूब कर खुद को राजधानी एक्सप्रेस के AC कोच में महसूस कर रहा था।
खैर, जितनी तैजी से राजधानी एक्सप्रेस गुजरी उसी तेजी से वो राजेश भी वापस अपनी दुनिया में वापस आ गया, बाहर का सन्नाटा बढ़ रहा था और ट्रेन (Train) के उस लोकल डब्बे में शोर अपनी जगह बना रहा था!
लोग अब व्यंगात्मक रूप से सरकार और रेलवे पर अपनी भावनाए व्यक्त कर रहे थे।
लगता हे ड्राईवर(Driver) को नीदं आ गई है…(एक महाशय ने कहा )
नहीं-नहीं ये तो इंडिया (India) है… (दूसरे ने उनका समर्थन किया )
अरे इंडिया (India) तो पहले भी था, सरकार ही निक्कमी हे… (एक महिला ने बहस में हिस्सा लिया)……..
(बहस अब बढ़ गई थी, लोग अपने शिक्षित होने का प्रमाण देकर उस महिला पर अपना प्रभाव डालने की फ़िराक में थे)
महाशय, जो खुद को अभी राजधानी एक्सप्रेस के AC कोच में महसूस कर रहे थे…हैडफ़ोन निकाल कर अब इस बहस का आनंद ले रहे थे और उनके चहरे की वो शालीनता भरी मुस्कान उनके युवा होने का प्रमाण दे रही थी।
आप पढ़ रहें हें hindishortstories.com द्वारा रचित कहानी -“रेल-कहानी नौजवान की | Train Short Story in Hindi “
तभी एक झटका सा लगा और ट्रेन (Train) चल पड़ी। गमी से परेशान हो कर जो लोग बहार बैठे थे सभी ट्रेन (Train) में चढ़ गए। ट्रेन के कोच में भीड़ बढ़ चुकी थी और बहस अब अपने अंतिम सफर पर थी…,एक अलग ही नज़ारा, उस लोकल कोच में देखने को मिल रहा था।
कुछ यात्री खड़े थे, कुछ सीटों पर और कुछ उपर बर्थ पर बैठे थे और कुछ पैसेंजर (Passenger) आश्चर्यजनक रूप से किसी के खड़े रहने की जगह ना होने के बावजूद अभी भी सो रहे थे।
राजेश लगभग पिछले दो घंटो से खड़ा था। वो शायद उस सोती हुई महिला को परेशान नहीं करना चाहता था, जिसकी साथी महिला ने अभी हाल ही हुई बहस में अपनी जित दर्ज कराइ थी|
लेकिन सुबह होने वाले अपने यू.पि.ए.सी. (UPSC EXAM) के पेपर के कारण उसने सिट पर बैठना ही उचित समझा।
थोड़ी देर में जब वो महिला उठ कर बाथरूम की और गई तो सही समय देखकर राजेश सिट पर बैठ गया। काफी समय खड़ा रहने के कारण अब उसे बड़ा आराम मिल रहा था…
लेकिन कुछ देर बाद जब वो महिला वापस आई तो उसने “भैया जरा उठना” जैसे मार्मिक शब्द का प्रयोग कर राजेश को उठा दिया और खुद सो गई।
इस बात का राजेश को बुरा तो लगा लेकिन किसी का इस और ध्यान नहीं गया, शायद रात के उस आगोश में सब अपनी दुनिया में व्यस्त थे।
अब राजेश फिर से खड़ा था लेकिन उसे पता था की वो ज़्यादा देर तक खड़ा नहीं रह पाएगा। थोड़ी देर खड़ा रहने के बाद जब उसके पैरों ने जवाब दे दिया तब उसने बैठना ही उचित समझा।
इस बार वो सीधा उस महिला के पेरो के पास जाकर बैठ गया। आदमी और औरत में फर्क ना समझने वाली इस पीढ़ी का ये युवा नौजवान तो बस अपने कल होने वाले .पि.ए.सी. (UPSC EXAM) पेपर के बारे में सोचकर रात के इस सन्नाटे के गुजर जाने के इंतज़ार में था, लेकिन इस सन्नाटे में आने वाले शोर से बिलकुल अंजान।
हल्के-हल्के नीदं के झोको के साथ छोटे से शहर का वो लड़का,अपनी ज़िन्दगी का वो हसीं सफर तय कर रहा था, जो उसके सपनो को हकीकत में बदलने वाला था।
तभी एक झुंझलाती हुई कर्कश आवाज उसके कानो में पड़ी………
दीखता नहीं हे, लेडिस सो रही हे, यहाँ कैसे बैठ गए (उस महिला ने कहा)
मेरा सुबह पेपर हे, में कबसे खड़ा के था इसलिए बैठ गया। आप सो जाइये आराम से (लड़के ने शिष्ठ्ता पूर्ण जवाब दिया)
कैसे बैठ जाए, बार-बार मैरे पैरों पर हाथ क्यों मार रहे हो (मिहिला ने झठू के साथ सिट पर कब्ज़ा कायम रखने की कोशिश की )
लेकिन मेने ऐसा कब कीया (लड़के ने अपने बचाव में कहा )
“बहस अब बढ़ चुकी थी, सब उस नौजवान को गलत समझ रहे थे जो अभी भी वहीं खड़ा था। तभी उस साथी महिला ने उस लड़के को तमाचा रसीद दिया जिसने कुछ ही देर पहले हुई बहस में अपनी जित दर्ज कराई थी”
सभी का ध्यान अचानक इस और गया….
लोग अब उन महिलाओं के साथ थे… नारी शक्ति अपने पुरे शवाब पर थी और पुरुष वर्ग नारी के सम्मान में अपना फ़र्ज़ निभा रहा था।
भीड़ ने उस लड़के को बुरा भला बोल कर बाथरूम के पास खदेड़ दिया। अपने साथ हुए इस अपमान ने उस लड़के को खुद की नज़रो में ही गिरा दिया।
बचपन से लेकर आज तक उस लड़के ने नारी को हमेशा माँ,बहन,और प्रेमिका के रूप में ही देखा था और बस प्रेम ही पाया था, नारी शक्ति का ये रूप उसने पहली बार देखा था।
अपनी पूरी ज़िन्दगी, उसने जब कभी भी किसी महिला को बस या ट्रेन में खड़ा देखा तो उसने हमेशा अपनी सिट उनको दी, हमेशा महि
लाओं का सम्मान किया। बात ये नहीं थी की उसे भी बदले में सम्मान चाहिए था पर इस तरह अपमान की भी उसे उम्मीद नहीं थी…
अपने कोच के दरवाजे पर खड़ा, वो खुद को इस दुनिया में सबसे अकेला महसूस कर रहा था। देश के लिए कुछ कर गुजरने की चाह रखने वाला वो युवा आज देश के इस महिला पुरुष के फर्क को समझ नहीं पा रहा था।
उसके सारे सपने जो बस हकीकत में बदलने ही वाले थे एक पल में ही धराशाही हो गए …..उसके हाथो की पकड़ अब ढीली होती जा रही थी…हवा के झोको के साथ उड़ कर हाथो पर गिरने वाली आँसुओ की बुँदे भी उसके जिंदा होने का प्रमाण नहीं दे पा रही थी. ……. ………
सुबह की उस किरण के साथ उस ट्रेन ने तो वो सफर पूरा किया पर उस नौजवान ने नहीं………… ………….
Train Short Story in Hindi
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