Hindi Short Stories के इस अंक में आप सभी का स्वागत है | वेबसाइट के इस अंक में आपको कई सारी Hindi Emotional Story पढने को मिलेगी | दोस्तों, कहानियों का हमारी ज़िन्दगी में काफी महत्त्व होता है |
बचपन में हम दादी-नानी की कहानियां सुनकर काफी कुछ सिखते थे, उन कहानियों में हम खुद को जोड़ कभी राजा या कभी रानी बन जाते थे | आज फिर हम आपको हमारी कहानियों के माध्यम से मोहोब्बत की उन गलियों में ले जाने का प्रयत्न कर रहें हैं, जहाँ आप फिर से Emotional हो जाएँगे |
धन्यवाद!
HINDI EMOTIONAL STORY | बौझ
कविता अपने माता पिता की बहुत लाडली थी। तीन बडे भाईयों की बहन थी। कोई भी चीज मांगने पर उसी वक्त सामने हाजिर हो जाती। पूरे घर में रौब था उसका। पूरे परिवार ओर नौकरों पर राजकुमारी की तरह हुक्म चलाती थी कविता।
स्कूल में भी पूरा रौब था उसका। बडे घर की लाडली जो थी वह। ऐसे ही उसने कालेज में दाखिला लिया। उसके ठाठबाट, बडी गाड़ी में आना जाना, हर दिन नया फैशन देखकर हर कोई उससे दोस्ती करना चाहता था।
थोड़े ही दिनों में उसके बहुत से दोस्त बन गए। पूरे कालेज में उसकी अपनी ही एक पहचान थी। इन दिनों उसके घर एक रिश्ता आया। खानदानी लोग थे ओर पापा की पुरानी जान-पहचान थी उनके साथ। कविता के साथ कोई जबरदस्ती नहीं थी| पर कविता ने फिर भी हां कर दी, कयोंकि वह अपने परिवार से बहुत प्यार करती थी।
वह जानती थी कि वह लोग उसका अच्छा ही सोचेंगे। लडके का नाम राज था। राज काफी पढा लिखा ओर समझदार लडका था। ससुराल वाले भी बहुत अच्छे थे। ससुराल में कविता की जगह वैसी ही थी जैसी कि मायके में। कोई भी कार्य कविता की सलाह के बिना नहीं होता था। सबकी लाडली बहू बन गयी थी वह। फिर उसके घर एक बेटे का जन्म हुआ।
राहुल कविता को जान से प्यारा था। पोता पाकर ससुराल वाले तो फूले नहीं समाते थे। कविता कभी कभी सोचती कि उसकी किस्मत कितनी अच्छी है। उसका हर अपना उसे कितना प्यार करता है। चाहे जीवन में कैसा भी समय आये मेरे अपने हमेशा मेरे साथ हैं, मैं कभी अकेली नहीं हो सकती।
कितनी खुशकिस्मत हूँ मैं। पर शायद कविता की खुशियों को उसकी अपनी ही नजर लग गई थी। एक दिन वह मायके जाने की जिद्द कर बैठी। राज को बहुत काम था।लेकिन वह फिर भी उसे ले गया।
रास्ते में उनकी गाड़ी अन्य गाड़ी से टकरा गई। कविता, राज ओर राहुल बहुत बुरी तरह से जख्मी हो गए। काफी दिनों के इलाज के बाद राज ओर राहुल तो ठीक हो गए लेकिन कविता पूरी तरह ठीक ना हो सकी। सर पर चोट लगने के कारण वह अपनी आंखों की रौशनी खो बैठी। अब कविता की किस्मत जैसे उलटे पांव चलने लगी।
मायके वाले कुछ दिनों तक उसे मिलने आते रहे फिर कभी कभार फोन ही करके पुछ लेते कि अब कैसी हो। धीरे धीरे ये सिलसिला भी कम हो गया। ससुराल वालों की सहानुभूति भी कम होने लगी। घर में किसी को पास बैठने के लिए कहती तो जवाब मिलता बहुत काम है अब तुम भी हाथ नहीं बंटा सकती।
राज भी चिडचिडा हो गया था। बस राहुल ही था उसके साथ जिसके साथ हंसते खेलते उसका वक्त गुजरता। एक दिन कविता के हाथ से कुछ सामान गिर गया जिसकी वजह से राहुल को हलकी सी चोट लग गई। कविता के सास ससुर ने राहुल को उससे अलग कर दिया कि कहीं उसके ना देखने की वजह से बच्चे का कोई नुकसान ना हो जाये।
कविता अंदर से टूट चुकी थी। एक दिन उसने सबके सामने मायके जाने की इच्छा रखी तो राज उसे तुरंत मायके छोड़ आया। जैसे कि वह भी यही चाहता था। लेकिन राहुल को उसके साथ नहीं भेजा गया। कविता कभी राहुल से दूर नहीं रही थी, पर अपनी कमी के कारण उसने ज्यादा बहस नहीं की।
कविता को लगा कि वह तीन चार दिन वहां रहेगी तो थोड़ा हवा पानी बदल जायेगा कयोंकि वह कितने दिनों से कहीं भी बाहर नहीं गयी थी। घर वाले भी इतने दिनों बाद उसे देखकर कितने खुश होंगे। कविता के घर पहुंचने पर सब लोग बहुत खुश हुए। खाने में सब कुछ कविता की पसंद का ही बना था।
उसने अपने मम्मी पापा ओर भाई भाभियों से दिल खोल कर बातें की। उनके छोटे छोटे बच्चे भी बूआ के साथ घुलमिल गए थे। रात को सोने के वक्त जब वह कपडे बदलने लगी तो उसे पता चला कि उसका बैग तो बहुत भरा हुआ था।
वह सब समझ गई। वह बहुत उदास हो गई। कुछ दिनों तक तो सब ठीक रहा, फिर जैसे सब बदलने लगा। सबका व्यवहार बदल रहा था। वह लोग जैसे थक चूके थे उससे। सब लोग घूमा फिरा कर पुछने लगे कि राज कब आ रहा है उसे ले जाने।
वह बहाना बना देती। जबकि वह जानती थी कि उस घर मे अब उसके लिए कोई जगह नहीं। कविता से चलते वक्त कुछ ना कुछ नुक्सान हो जाता। थोड़ी बहुत टोकाटाकी उसे सूनाई देती। वह टाल देती।
एक दिन उसके हाथ से लगकर एक कीमती फूलदान टूट गया। छोटी भाभी ने बहुत हंगामा मचाया। कविता के माता पिता रोज रोज के झमेलों से तंग आ गए थे। उन्होंने राज को खुद से फोन कर दिया। राज कविता को अपने घर ले गया। कविता को अपने परिवार वालों से ये उम्मीद ना थी जिस कविता के कहे बिना घर मे एक पत्ता भी नहीं हिलता था, उस घर के लिए वह अब बोझ बन चुकी थी।
राज के साथ ससुराल आते वक्त वह बहुत खुश थी। क्योंकि वह अपने घर जा रही थी अपने जिगर के टूकडे राहुल के पास। परन्तु यह खुशी भी कुछ पल की ही थी। सारा बन्दोबस्त पहले ही किया हुआ था। कविता को सीधे ऊपर वाले कमरे में पहुंचा दिया गया। राहुल से दूर रहने की सख्त चेतावनी दी गई।
एक कामवाली लता को उसकी जिम्मेदारी सौंपी गई। जो उसके खाने पहनने जैसी जरूरतों का ध्यान रखती। कविता ज्यादातर चुप ही रहती। कभी-कभी कामवाली लता से थोड़ा बतिया लेती। उसके जरिये राहुल का पता चल जाता। सबकी लाडली बेटी ओर बहू सबके लिए लाडली से बोझ बन चुकी थी।
Hindi Emotional Story | बौझ
“गुर प्रीत”
नरगिसी फुल | Heart Touching Emotional Story
आज आशी जब सुबह-सुबह उठी तो खिड़की से बाहर देखते ही उसका चहरा मुरझा गया| अरे! कहाँ चले गए…कल तो यहीं थे| इतने महीनों से रोज सुबह दोनों को देखना उसकी आदत सा बन चूका था और आज जब दोनों अपनी जगह पर नहीं थे तो आशी को कुछ खाली-खाली सा लग रहा था|
सुबह-सुबह बस वो दोनों सामने दिख जाते तो आशी का रोम-रोम पुलकित हो उठता था| सुवासित हो उठती थी उसकी सांसे| मन एक अद्भुत ख़ुशी महसूस करने लगता और सबसे खास बात इन सबका सकारात्मक प्रभाव पड़ता उसके मन-मस्तिक्ष पर और कलम खुद-ब-खुद कोई गीत लिखने लगती|
पता नहीं क्या जादू था उन नरगिसी फूलों में| बस देखते ही मन मचल उठता| शायद असीम का असीम प्यार भरा था उनमे| आखिर उसी ने तो आशी के जन्मदिन पर यह गमला उसे उपहार में दिया था और फिर दोनों ने मिलकर उसमें नरगिसी फूलों का यह पौधा लगाया था|
“देखो न आशी! तुम्हारे लिए एक काम सौप कर जा रहा हूँ| कल ही मुझे कम्पनी के एक प्रोजेक्ट के लिए दुबई निकलना पड रहा है| बस छः महीने की ही तो बात है फिर आते ही झट मंगनी और पट ब्याह| बस तब तक मेरी यादों को इस पौधे में संजोती रहना” असीम को आशी को बातों में उलझाना बड़े अच्छे से आता था|
असीम बेशक चला गया था, लेकिन आशी हर रोज बड़े अरमानों से उस पौधे को सींचती रही| आशी की ख़ुशी का उस वक़्त ठिकाना नहीं था जब वह एक रोज सुबह उठी और उसने पौधे पर दो उल खिले हुए देखे, पीले रंग के…|
दोनों फुल बिलकुल एक दुसरे से जुड़े हुए थे, आशी और असीम की तरह| आशी रोज उन फूलों को निहारती रहती और असीम को याद करती|
आशी की रोज असीम से फोन पर बात होती थी, भला दो साल से चल रहा प्रेम दूरियों से कैसे कम हो सकता था| इसी प्रेम की शक्ति ने तो उसे क्या से क्या बना दिया था| कभी किसी को चिट्ठी-पत्री में दो अक्षर न लिखने वाली आशी की कलां आज अनवरत चलने लगी थी| अपने जज्बातों की स्याही में भिगोकर क्या-क्या न लिख डाला था उसने|
“तेरे अहसास में खुद को ऐसे फ़ना कर दिया हमने! ज़िन्दगी बाकी न बची, न तेरे साथ और न तेरे बाद|”
पता नहीं कैसे अहसास थे जो दिल से निकलकर पन्नों पर बिखरते रहते थे| जब भी मन होता, आशी उन नरगिस के फूलों को निहारते हुए खिड़की के पास कागज़ कलम लेकर बैठ जाती| माँ जब डांटना शुरू कर देती तब सुध पड़ती की कुछ खाना भी है और घर का काम काज भी देखना है|
पता नहीं पिछले कुछ दिनों से क्या हो गया था उसे| पतझड़ का मौसम आ गया था, फुल मुरझाने लगे थे| माली से पुच कर खाद पानी भी डाला| असीम को फोन पर बताया तो वह भी पहले खूब हंसा फिर बोला “पतझड़ बीत जाने दो सब कुछ ठीक हो जाएगा|”
आशी फिर भी आश्वस्त नहीं हो पा रही थी| अब तो बसंत की बहार भी छाने लगी थी| चारों तरफ एक मीठी बयार बहने लगी थी लेकिन फिर भी आशी को कुछ सही नहीं लग रहा था| आज भी उन फूलों को देखे बिना बैचेनी बढ़ रही थी|
आशी, कागज कलम फेंक कर बाहर आ गई थी और गमले के आसपास ही चहलकदमी करने लगी| कुछ समझ नहीं आ रहा था की क्या हो रहा है| इसी सोच में उसे यह भी ध्यान नहीं रहा की काफी देर से बाहर की घंटी बज रही है|
“आशी! कहाँ खोई हुई हो ? दरवाजे पर कब से घंटी बज रही है…ध्यान कहाँ है ?” माँ ने दरवाजे की और जाते हुए पूछा…
इससे पहले की आशी सम्हाल पाती, दरवाजे पर असीम खड़ा था| मुस्कुराते हुए, हाथों में नरगिसी फुल लिए….
Hindi Emotional Story | नरगिसी फुल
“सीमा भाटिया”
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