अजीबो गरीब – Hasya Kavita in Hindi
अजीबो गरीब
एक हमारी परम मित्र ने खूब काम कर डाला
मोटी-मोटी काली-काली जुँओं को सिर में पाला ।
हुई हमारे घर जब पार्टी वो भी मिलने आईं
हाथ हमारे दे एक तोहफा धीरे से मुस्काईं ।
शुरु हो गईं बातें फिर तो लगा न मुँह पर ताला ।
एक—————————
तभी हमारी नजर गई उनके गालों के तिल पर
हुआ अचंभा कल तक न था यह उनके गालों पर
कहाँ से आया कहाँ से टपका यह काले पर काला
एक —————————-
तभी अचानक लगा भटकने वह उनके गालों पर
भटके जैसे कोई नौका लहरों के जालों पर
वह तो था पथभ्रष्ट जुआँ एक मोटा काला काला
एक—————————–
हमने जब पूछा उनसे तो बोलीं वे इतराकर
रखना इनको कोई न चाहे भागें सब जान बचाकर
हमने सोचा कोई तो बने इतना हिम्मतवाला ।
इसी वजह से हमने इनको सिर में अपने पाला ।
इतना कहकर वे तो चल दीं इठलाती बलखाती
पर मैं अपनी जगह पे जड़ थी गुस्साती खिसियाती ।
सोच रही थी कहाँ से पल गया इनसे मेरा पाला ।
एक —————————-
अजीबो गरीब – Hasya Kavita in Hindi
लेखक:- कोमल टंडन
Email:- shreyakhatri3@gmail.com
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