शूरवीरों का धरती चित्तोडगढ | Chittorgarh Fort
राजपूत राज्य राजस्थान का एक छोटा सा मगर बेहद खुबसूरत शहर चित्तौडगढ (Chittorgarh fort) और अपने आप को शूरवीरों की तरह सीना ताने खड़ा रखे चित्तोडगढ का किला! देखने पर ऐसा लगता है, मानो आज भी लाखों राजपूत सेनिकों के बलिदानों की कहानी बयां कर रहा हो….
यूँ तो राजस्थान की धरती पर जन्म लेना अपने आप में एक बहुत बड़ी बात है! लेकिन अगर आपने अभी तक राजस्थान की इस पावन धरती के दर्शन नहीं किये हैं तो हम आपको आज बताएँगे की आपको सबसे पहले जाना कहाँ है| वैसे तो पूरा राजस्थान घुमने के लिहाज से भारत में सबसे शानदार जगह है| लेकिन अगर आपको हेरिटेज (Heritage) जगहों और किलों को देखने का शोक है तो आप सबसे पहले रुख कर सकते हैं चित्तौडगढ (Chittorgarh fort) का!
चित्तौडगढ पहुँचने के लिए आप सड़क, रेलवे और हवाई मार्ग का सहारा ले सकते हैं| अगर आप सड़क मार्ग से चित्तौडगढ पहुंचना चाहते हैं तो आप National Highway 8 (NH 8) से सीधा चित्तौडगढ पहुँच सकते हैं| रेलवे मार्ग से भी चित्तौडगढ़ तक पहुंचना काफी आसान है, रेलवे के चित्तौडगढ जक्शन होने के कारण यहाँ पर पहुँचने के लिए आपको आसानी से ट्रेन मिल सकती है| इसके अलावा हवाई मार्ग से चित्तौडगढ पहुँचने के लिए आपको उदयपुर हवाई अड्डे पर उतरना होगा|
रात बिताने के लिए चित्तौडगढ में कई होटल, लॉज और धर्मशालाएं उपलब्ध है| आप अपने बजट के अनुसार रात बिताने के लिए रूम बुक कर सकते हैं|
अगर आप अब तक चित्तौडगढ (Chittorgarh fort) आने का प्लान बना चुके हैं, तो हमारी बात मानिये और चित्तौडगढ का रुख सुबह की पहली किरण के साथ करे| चित्तौडगढ किले से सूर्योदय और सूर्यास्त (Sunset at Chittorgarh fort) के नज़ारे को आप हमेशा के लिए अपनी यादों के झरोखों में समेट कर ले जा सकते हैं|
चलिए अब जानते है चित्तौडगढ के इस भव्य किले की भव्यता के बारे में….चित्तौडगढ का किला कुल 709 एकड़ में बसा हुआ है| जिस पहाड़ी पर यह किला बसा हुआ है, उस पहाड़ी का घेरा लगभग 8 मील का है| इस पहाड़ी की उचाई लगभग 180 मीटर है| सुरक्षा के लिहाज से चित्तौडगढ सबसे मजबूत किला माना जाता है| किले में पहुँचने के लिए सात दरवाजो से होकर गुजरना पड़ता है|
केवल एक रात में किया गया था चित्तौडगढ़ (Chittorgarh fort) किले का निर्माण
इस किले के बारे में कई कहानियां है| लेकिन कहा जाता है की इस विशाल किले का निर्माण केवल एक रात में किया गया था| जी हाँ, द्वापर युग में पांच पांडवों में से सबसे बलशाली भीम जब संपत्ति की खोज में थे तब उन्हें इस पहाड़ी पर पारस पत्थर होने की सुचना मिली| भीम जब पारस पत्थर की खोज में इस पहाड़ी पर पहुंचे तब उन्हें रास्ते में एक योगी निर्भयानाथ और एक यति कुकडेश्वर मिले| भीम को जब यह पता चला की योगी निर्भयानाथ के पास पारस पत्थर है तो उन्होंने योगी से पारस पत्थर की मांग की| भीम के बलशाली शरीर को देख योगी ने उन्हें पारस पत्थर देने के लिए एक शर्त के साथ हाँ कर दी लेकिन शर्त यह थी की अगर भीम एक रात में इस पहाड़ी पर एक योगी के रहने के लिए इस पहाड़ी पर एक सुन्दर महल का निर्माण कर दे तो उन्हें पारस पत्थर मिल सकता है|
भीम को योगी की शर्त को पूरा करना लगभग असंभव लगा लेकिन पारस पत्थर को पाने की लालसा में उन्होंने योगी की शर्त को मान लिया सुर महल बनाने के काम में जुट गए| कहा जाता है की भीम में सौ हाथियों के बराबर शक्ति थी| इस असंभव काम को भीम ने एक रात में ही लगभग पूरा कर लिया था| लेकिन योगी निर्भायानाथ ने जब भीम को महल का काम पूरा करते देखा तो उनके मन में भीम को पारस पत्थर ना देने का विचार आया| इसलिए योगी ने भीम के काम को रोकने की एक योजना बनाइ|
महल को बनाने का काम लगभग पूरा हो चूका था सिर्फ पश्चिम क्षेत्र में थोडा सा निर्माण बाकि था| तभी योगी निर्भयानाथ ने यति कुकड़ेश्वर से मुर्गे की बाग़ में आवाज लगाने को कहा| उस ज़माने में मुर्गे की बैग को ही सवेरा होने का प्रमाण मन जाता था| भीम ने जब मुर्गे की बाग़ सुनी तो अपने कार्य को विफल होते देख क्रोध में आकर अपने पैर को जोर से पटका| कहा जाता है की भीम के जोर से पैर पटकने के कारण वहां एक गड्ढा बन गया जिसे आज भी भीम कुंड के रूप में जाना जाता है|
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