साथियों नमस्कार, आज हम आपके लिए एक ऐसी करुणादायक “Hindi Kavita | भूख” लेकर आएं हैं जिसे पढ़कर आपको समाज के एक ऐसे वर्ग को जानने का मौका मिलेगा जो सारी बिनियादी सुविधाओं से आज भी वंचित है पढ़ें
Hindi Kavita | भूख
वो खड़ी थी दरवाज़े पर, अकेले कब से…
चूल्हे से रोटी की भीनी खुशबु आई थी शायद जब से..
या शायद तब से जब माँ ने पंडित के कहने पर एक रोटी कुत्ते को डाली
या शायद तब से जब हम सब ने अपने हिस्से की रोटी खा ली..
वो खड़ी रही तब तक, जब तक बर्तनों के खड़कने की आवाज़ नहीं आई…
वो कड़ी रही तब तक, जब तक माँ उसके लिए रोटी नही लाई!
शायद इंतजार था उसे हम सब का पेट भर जाने का…
या शायद इंतजार था बची हुई रोटी अपने घर ले जाने का!
वो जानती थी की इस दरवाज़े के भीतर भी एक माँ है…
वो जानती थी की उसकी भूख का इलाज है तो सिर्फ यहाँ है!
भूख सिर्फ रोटी की नहीं थी उसे जो कहीं से मिल जाए और मिट जाए…
भूख उस ममता की थी जिस से रोटी के लालच में वो लिपट जाए!
भूख थी की कोई एक निवाला भी उसे अपने हाथो से खिलाए…
नए फैशन की फ्राक कोई उसे भी प्यार से दिलाए!
यही सब सोचती वो कड़ी थी अब भी बहार…
भूखी ही चली गई आज फिर किसी को अपना ना पाकर!
भूख – Hindi Kavita
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