साथियों नमस्कार, आज हम आपके लिए सावन के कुछ ऐसे गीतों “सावन लोक गीत इन हिंदी लिरिक्स” का समावेश करने जा रहें हैं जिन्हें आप अपने घर-परिवार में रोजमर्रा के काम-काज के साथ गुनगुना सकते हैं|
सावन लोक गीत इन हिंदी लिरिक्स
ज्यों ज्यों बूँद परत चूनर पर,
त्यों त्यों हरी उर लावत, आवत ॥ कुन्जन में ….
अधिक झंकोर होत मेघन की,
द्रुम तरु छिन छिन गावत आवत ॥ कुन्जन में ….
वे हँसि ओट करत पीताम्बर,
वे चुनरी उन उढ़ावत, आवत ॥ कुन्जन में ….
भीजे राग रागिनी दोऊ,
भीजे तन छवि पावन, आवत ॥ कुन्जन में ….
लै मुरली कर मन्द घोर स्वर,
राग मल्हार बजावत, आवत ॥ कुन्जन में ….
तैसे ही मोर कोकिला बोलत,
अधिक पवन घन भावत, आवत ॥ कुन्जन में ….
सूरदास प्रभु मिलन परस्पर,
प्रीत अधिक उपजावत, आवत ॥ कुन्जन में ….
शब्दार्थ : आवत = आते हैं, परत = पड़ती हैं, लावत = लाते हैं, झंकोर = गड़गड़ाहट की ध्वनि, उन = उन्हें, बजावत = बजाते हुए, उपजावत = उत्पन्न करते हुए
कृष्ण हिंडोले | सावन लोक गीत इन हिंदी लिरिक्स
कृष्ण हिंडोले बहना मेरी पड़ गये जी,
ऐजी कोई छाय रही अजब बहार।
सावन महीना अधिक सुहावनौ जी,
ऐजी जामें तीजन कौ त्यौहार।
मथुरा जी की शोभा ना कोई कहि सके जी,
ऐजी जहाँ कृष्ण लियौ अवतार।
गोकुल में तो झूले बहना पालनो जी,
ऐजी जहाँ लीला करीं अपार।
वृन्दावन तो बहना सबते है बड़ौ री,
एजी जहाँ कृष्ण रचायो रास।
मन्दिर मन्दिर झूला बहना मेरी परि गये जी
एजी जामें झूलें नन्दकुमार।
राग रंग तो घर घर है रहे जी,
ऐजी बैकुण्ठ बन्यौ ब्रजधाम।
बाग बगीचे चारों लंग लग रहे जी,
ऐजी जिनमें पंछी रहे गुंजार।
मोर पपैया कलरब करत हैं जी,
ऐजी कोई कोयल बोलत डार।
पावन यमुना बहना मेरी बहि रही जी,
ऐजी कोई भमर लपेटा खाय।
ब्रजभूमी की बहना छवि को कहै जी,
ऐजी जहाँ कृष्ण चराईं गाय।
महिमा बड़ी है बहना बैकुण्ठ तै जी,
एजी यहाँ है रहे जै जैकार।
शब्दार्थ : जामें = जिसमें, लंग = ओर / तरफ
झुकी है बदरिया कारी, कब आओगे गिरधारी
झुकी है बदरिया कारी, कब आओगे गिरधारी।
उमड घुमड कर घिरी हैं घटाएँ,
घोर शब्द होए भारी, कब आओगे गिरधारी।
धड धड कर यह जियरा धडके,
आए याद तुम्हारी, कब आओगे गिरधारी।
पी पी शोर मचाए पपीहा,
कोयल अम्बुआ डाली, कब आओगे गिरधारी।
गरज गरज कर इन्द्र डरावे,
देख अकेली नारी, कब आओगे गिरधारी।
रिमझिम रिमझिम मेहा बरसे,
भीजे चुनर हमारी, कब आओगे गिरधारी।
ओ किशोर चितचोर साँवरे,
चाकर मैं शरणाई, कब आओगे गिरधारी।
आई बागों में बहार, झूला झूले राधा प्यारी
आई बागों में बहार, झूला झूले राधा प्यारी
झूले राधा प्यारी, झुलावें बनवारी || आई बागों में …………..
सावन की ऋतु है आई, घनघोर घटा नभ छाई
ठंडी-ठंडी पड़े फुहार, झूला झूले राधा प्यारी || आई बागों में …………..
हो मस्त मोर यूँ नाचे, मोहन की मुरलिया बाजे
कू-कू कोयल करे पुकार, झूला झूले राधा प्यारी || आई बागों में ……….
सब सज रहीं नार नबेली, नटखट करते अठखेली